Sunday 31 August 2008

शाऊल बना पौलुस

पिछले दिनों प्रेरितों के काम का वो हिस्सा पढ़ा जिसमें शाऊल नाम का अत्यंत प्रतिभावान फरीसी नवयुवक, यीशु नाम के किसी गलीली के शिष्यों के बढ़ते प्रभाव को लेकर बहुत उद्वेलित है। वो समझता है कि यीशु के शिष्य कोई नया पंथ बनाने का प्रयास कर रहे हैं जो प्राचीन यहूदी धर्म के लिए खतरा है। इस नई ईशनिंदा को रोकने के लिए वह प्रमुख पुरोहितों से आदेश पाकर दमिश्क के यीशु भक्तों को बंदी बनाकर यरुशलेम लाना चाहता है। परंतु दमिश्क जाते हुए रास्ते में उसका साक्षात्कार स्वयं यीशु से होता है और वह जो भक्तों को बंदी बनाने के लिए निकला था स्वयं शिष्य बन जाता है। इस घटना को दोहों में लिखने की प्रेरणा मिली तो कुछ इस प्रकार का परिणाम सामने आया।

मोहे सतावन क्यों चले क्यों चले चाल घनघोर
मेरा प्रेम परचारेगा तू पग पग चल हर ओर

क्या सोचा पौलूस ने क्या हुआ नतीजा जान
भक्तन को बांधन गया और भक्त बनी पहचान

बंध आया भक्तन के जैसे प्रभु प्रेम का पाश
आंखों का परदा गिरा अज्ञान हुआ फिर नाश

प्रभु प्रेम का जादू है ये प्रभु प्रेम की माया
बैरी मिलता बैरी से बन मीत क्रूस की छाया


प्ररितों के काम: बाइबल के दूसरे हिस्से नए नियम की पांचवी पुस्तक। इस पुस्तक में यीशु मसीह के जाने के बाद मसीही समुदाय के निर्माण का वर्णन है।
फरीसी: यहूदी धर्म का अत्यंत प्रभावशाली पंथ जो धर्मशास्त्रों का गहराई से अध्ययन करने और उसके विधि विधानों के मानने पर अत्याधिक ज़ोर दिया करता था।