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Tuesday, 29 September 2009
कमीने फ़िल्म का शीर्षक गीत सुनने पर
यू-ट्यूब (Youtube) पर कमीने फ़िल्म का शीर्षक गीत "कमीने कमीने" के प्रत्युत्तर में सबसे ताज़ा टिप्पणी थी—This song defines my entire life (यह गीत मेरे सम्पूर्ण जीवन को परिभाषित करता है)। इस एक टिप्पणी मे कितने ही लोगों की अनकही टिप्पणियां छिपी हो सकती हैं। आजकल ऐसे गीत कम ही सुनने को मिलते हैं जिनमें पात्र अपने आप को संबोधित कर रहा हो। फ़िल्मी गीतों में इमानदारी लगभग नदारद है क्योंकि अपने आप से बात करने की कला हम खोते जा रहे हैं। भारतीय दर्शन (Indian philosophy) सिखाता है कि हम अपनी सच्चाई को जानें। हम वास्तव में हैं क्या। यूनानी दर्शन भी यही सीख देता था—Know Thyself. हमाने प्राचीन दर्शनों में यह माना जाता रहा है कि हमारा देवत्व, हमारे मनुष्यत्व की सर्वोत्तम तस्वीर हमारे अंदर ही छिपी है। लेकिन हमारा अनुभव अड़ियल है। वह कहता है हम अपने भीतर देखें तो कमीनगी पाते हैं। फ़िल्म मैंने अभी तक नहीं देखी तो कह नहीं सकता की यह गीत किस मौके पर आता है और इसके बाद यह किरदार किस तरह का रास्ता अख़्तियार करता है। लेकिन जब हम इस तरह के पलों में अपने आप को देखते हैं तो बहुत आसान होता है अपनी कमीनगी को अपनी ज़रूरत, या मजबूरी, यहां तक की उसे अपनी प्रतिभा मान कर उसी रास्ते पर चलते जाना। हमारी ज़िंदगी की परिभाषा का निर्माण दरअसल इसी पल से शुरू होता है। ज़िंदगी की परिभाषा कैसी होगी? क्या मैं उसे ख़ुद लिख सकता हूँ? बदल सकता हूँ?
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3 comments:
सही कहा!
Thank you for your blog. You were part of a conversation with Tim Gilman on Facebook. I saw your name and found your blog on google. I appreciated your heart in what you shared. Blessings,
Debbye debgraafsma.blogspot.com
But, the entire premise of the argument rests on the fact that something that is 'kaminey'. The today's generation is in a state of flux. It can no longer identify with the old beliefs of morality and yet it seems guilt-ridden with an acts that go against it. This conflict needs to be resolved and I do not believe that experience is necessarily the wait that one needs to make.
On a more personal note, I have been trying to look into myself for a long time and have suddenly lost the ability to do so. The moral compass which when suspended used to align with the poles and point due north now seems to just spin. My thinking is clouded. And, hence, maybe even my thoughts are 'kaminey' which are latent but still present.
(I wished to write a comment in hindi but I could not find the option).
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