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Wednesday, 2 March 2011

जागृतिः एक लघु नाटिका




दो आँखों से देखी दुनिया
कुछ सीधी कुछ टेढ़ी दुनिया

कुछ तो गड़बड़ है मेरे भाई
दो आँखें पर समझ न पाईं

सच्ची बातें बोलनी होंगी
मन की आँखें खोलनी होंगी

शिक्षित होना फर्ज़ हमारा
शिक्षा है अधिकार हमारा

दृश्य 1
(राजू  और मनोज स्कूल का बस्ता उठाए जा रहे हैं, मदन उनका दोस्त उसे आवाज़ देता आता है)

मदनः
ए राजू, ए मनोज कहाँ जा रहा हो यार?
राजूः
स्कूल, और कहाँ?
मनोजः
तुम नहीं जा रहे क्या?
मदनः
अबे क्या करना स्कूल जाकर। वहाँ मास्टर जो पढ़ाता है वह समझ में तो आता नहीं और वह पिटाई करता है सो अलग। आज एक नई पिक्चर लगी है, चल देख कर आते हैं।
मनोजः
हाँ, हाँ चलो। चलो न भैया
राजूः
रुको मनोज। स्कूल चलो। मम्मी-पापा को पता चला तो बड़ी मुशिकल हो जाएगी।
मदनः
कौन परवाह करता है। हम तो आज़ाद लोग हैं। हम नहीं डरते किसी से। और पढ़-लिख कर क्या होने वाला है?
मनोजः
भैया कहते हैं पढ़-लिख कर ही नौकरी मिलेगी।
मदनः
नौकरी किस बेवकूफ़ को करनी है, मेरे पापा की तो दुकान है। वह मुझे ही तो संभालनी है। चल मनोज फ़िल्म देखते हैं। उसके बाद और मज़े करेंगे।
राजूः
मदन, हमारे माँ-बात की न तो दुकान है न फ़ैक्ट्री। हमें तो अपनी मेहनत से ही कुछ बनना है। और मैं तुम्हें अपने छोटे भाई को बिगाड़ने नहीं दूँगा। मुझे सब मालूम है कि तुम और तुम्हारे दोस्त छुप-छुप कर नशे करते हो। चल मनोज, स्कूल चल।
मदनः
अपने भाई की सुनेगा तो ज़िंदगी का कोई मज़ा नहीं ले सकता। चल मेरे साथ चल। नौकरी मैं तुझे दे दूँगा, अपनी दुकान पर।
मनोजः
चलो न भैया।
राजूः
नहीं मनोज। इसका क्या मालूम यह तो अपने माँ-बात का नाम डुबो देगा। दुकान भी बरबाद कर देगा। चल हम अपनी राह पर चलें।


दृश्य 2

(सरोज, मदन की माँ और राजकुमार, मदन के पिता अपने घर पर)
सरोजः
अजी सुनते हो। मदन के स्कूल से फिर शिकायत आई है। वह पेपरों में फेल हो गया। और कहते हैं वह स्कूल भी नहीं जाता।
राजकुमारः
अरे तू यूँ ही चिंता करती है मदन की अम्मा। जवान लड़के ऐसे ही होते हैं। और उसे कौन सा किसी की नौकरी करनी है। कुछ सालों में दुकान उसे ही संभालनी है।
सरोजः
तुम कुछ भी कहो लेकिन मुझे यह अच्छा नहीं लगता (कुछ देर रुक कर) सुनो, प्रतिभा ने आठवीं क्लास भी पास कर ली। अब नौंवी क्लास के लिए उसे बड़े स्कूल में दाखिला दिलवाना है।
राजकुमारः
मैंने तुम्हें पहले भी कहा है, मुझसे उसकी पढ़ाई की बात मत करना।
सरोजः
क्यों न करूँ?
राजकुमारः
लड़की को पढ़ा कर क्या करना है। कुछ ही देर में उसकी शादी कर देंगे। उसने गाँव जाकर घर का काम-काज ही तो देखना है। और मदन को तो मैं पढ़ा ही रहा हूँ।
सरोजः
अजीब हो तुम भी जो पढ़ना चाहती है उसे पढ़ाते नहीं और जो पढ़ता नहीं उसे कुछ अच्छी सीख नहीं देते। अब वह छोटा बच्चा नहीं रहा।

(प्रतिभा, मदन की बहन, दाखिल होती है)
प्रतिभाः
माँ, माँ, मेरी टीचर कह रही थी कि मुझे आगे पढ़ने के लिए वज़ीफ़ा मिल जाएगा। तुम्हें मेरी फ़ीस देने की भी ज़रूरत नहीं।
राजकुमारः
चुप कर। ये फ़ैसला मुझे करना है कि तू पढ़ेगी या नहीं।
प्रतिभाः
मुझे पढ़ना है पापा। टीचर कहती है मैं बहुत होशियार हूँ। और मदन का सारा होमवर्क भी मैं ही तो करती हूँ।

(एक लड़का तेज़ी से अंदर आता है)
लड़काः
अंकल, अंकल। मदन को पुलिस ने पकड़ लिया।
सबः
क्या
लड़काः
वह थियेटर के पीछे दोस्तों के साथ नशा कर रहा था। जल्दी चलिए अंकल

(लड़का और राजकुमार बाहर निकल जाते हैं)
सरोजः
मैंने इन्हें कितना कहा कि लड़को को संभाल लो, हाथ से निकल जाएगा लेकिन इनकी आँखों पर न जाने कैसा परदा पड़ा था। हे भगवान अब क्या होगा।



दृश्य 3
राजू और मनोज का घर, उनके माता-पिता, हीरालाल और पुष्पा उनके साथ हैं
राजूः
लेकिन पिता जी यह गलत है
हीरालालः
नहीं बेटा। दुनिया का चलन ऐसा ही है। हम गरीब लोग हैं हम कुछ नहीं कर सकते।
पुष्पाः
बेटा मुझे भी तो बताओ हुआ क्या
राजूः
माँ तुम जानती हो, आज जब मैं पिता जी को खाना देने गया तो मैंने क्या देखा।
पुष्पाः
क्या बेटा?
राजूः
आज जब वहाँ सबको तनखाह दी जा रही थी तो मैं भी पापा के साथ गया। वहाँ जिस कागज़ पर अँगूठा लगाया वहाँ लिखा था कि उन्हें 5,000 रुपये दिए जा रहे हैं जबकि पापा के हाथ में 2,500 ही आए।
पुष्पाः
सच बेटा। हमने तो कभी ये सोचा ही नहीं।
हीरालालः
हम अनपढ़ जो ठहरे। लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते।
राजूः
नहीं पापा, हम सब कुछ कर सकते हैं। आप अपने साथ के मज़दूरों को असलियत बताइए और आप मिल कर अपना हक माँगो।
पुष्पाः
राजू ठीक कहता है। आज यह पढ़-लिख कर इस काबिल बन गया है कि हमारे जन्म सुधार दे। जैसा यह कहता है वैसा करो।
हीरालालः
ठीक कहती हो राजू की माँ, मैं अभी सारे लोगों को इकट्ठा करता हूँ।


 आशीष अलेक्ज़ैंडर
(रविवार, 27 फ़रवरी 2011 को सेक्टर 53 चंडीगढ़ के सामुदायिक केंद्र में शिक्षा का अधिकार विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में स्थानीय बच्चों के साथ इस लघु नाटिका का मंचन किया गया।)