Monday, 20 October 2008

सफेद बाघ का शिकार

अरविंद अडिगा के बुकर पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास द व्हाइट टाइगर पढ़ चुकने के तीन दिन बाद तक मेरे ज़हन में ये बात क्यों नहीं आई? भारत में अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओं के टकराव की बहसें होनी तो प्रत्याशित थीं। यह बात भी समझ में आती की साहित्यिक दृष्टि से यह नॉवल शार्टलिस्ट में रहे बाकी उपन्यासों से किस प्रकार बेहतर है, इस मुद्दे पर भी विवाद होगा। पर बहस का एक बिंदु यह होगा कि अंग्रेज़ों ने इस उपन्यास को पुरस्कार देने के लिए इसलिए चुना क्योंकि यह उपन्यास भारत की गरीबी, भ्रष्टाचार, गंदगी को उजागर करता है मेरी समझ के राडार में नॉवल पढ़ने के तीन दिन तक नहीं आया। हम तो इस उम्मीद में थे कि लोग ख़ुश होंगे कि अंग्रेज़ी में लिखने वाले किसी ने विदेशी पर्यटकों के लिए रंगीन, सुगंधित, मनमोहक भारत की बजाय एक यथार्थवादी तस्वीर देने का हौसला किया है।

खैर, कल एक सभा में शिरकत करते हुए यह बात सुनने को मिली तो कुछ हैरानी हुई। क्यों लोग इस सांस्कृतिक पैरानोइया से मुक्त नहीं हो पा रहे? अंग्रेज़ी भाषा में, या पश्चिम में जो भी हरकत होती है उसे अपने खिलाफ़ साज़िश क्यों माना जाता रहे? खैर, उपन्यास सशक्त है। कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से। मेरी जानकारी के मुताबिक मुल्क राज आनंद के अनटचेबल और कुली के बाद भारत में अंग्रेज़ी में लिखा गया पहला ऐसा उपन्यास जो भारत के निचले/कुचले तबके को एक पूरा वृत्तांतिक कैनवस देता है, और इमानदारी से। अडिगा और आनंद में अंतर है तो यह कि आनंद के उपन्यास में उन्नत समाजवाद का भव्य स्वप्न दिखाया जा रहा था जबकि अडिगा का द ग्रेट सोशलिस्ट स्वयं भ्रष्टाचार और अंधकार की धुरी है।

अपने वृतांतिक विन्यास में पश्चिम की किसी भी प्रकार की सक्रिय भूमिका को यह उपन्यास कितनी दृढ़ता से खारिज करता है इसका अंदाज़ा इस बात से लगता है कि मुख्य पात्र किसी अमेरिकी या ब्रितानी हुक्मरान की बजाय अपने से भी अधिक पूर्वी सभ्यता के प्रधान शासक को संबोधित करता है। पर अंततः उपन्यास भारतीय है, भारत से मुखातिब है। उपन्यास किसी भी किस्म की लिसलिसी भावुकता में लिप्त नहीं। धर्म, संस्कृति और प्राचीन सभ्यता के मामले पूरी तरह बेअदब। ऐसे उपन्यास कम ही लिखे गए हैं। अच्छा यही होगा कि बजाय किसी षड्यंत्र को सूंघ लेने के, इस प्रकार के लेखन को उसकी शर्तों पर पढ़ा जाए।

शिकार करने से पहले सोचें, सफ़ेद बाघ दुर्लभ होते हैं।