Thursday, 10 November 2011

क्रूरता का यू-टर्न

कुछ साल पहले इंडियन एक्सप्रेस के लिए फ्रीलांसिंग करते हुए रामगोपाल बजाज के एक कविता पाठ सत्र में शिरकत करने का मौका बना ... हाल ही में उसकी ऑनलाइन रिपोर्ट अँग्रेज़ी  ब्लॉग पर डाली है। रंगमंच के उस अग्रणी कलाकार ने कहा था कि अज्ञेय उनके सबसे पसंदीदा लेखंकों में से हैं, उन्हीं की कई कविताएँ भी उन्होंने पढ़ीं। लेकिन एक कविता जिसने खासतौर पर मेरा ध्यान खींचा वह अज्ञेय की नहीं थी। उसी की एक लाइन मैंने अँग्रेज़ी में ट्रांसलेट करके हेडलाइन बनाई जो, सच कहूँ तो, कुछ गैरवाजिब-सी लग रही थी, लेकिन मैं उसे  बदलना नहीं चाहता था। देर शाम घर से स्टोरी फ़ाइल करने के बाद मैंने रात को डेस्क पर फ़ोन करके खास आग्रह किया कि हेडलाइन बदली न जाए ... मुझे लगा था कि उस शाम सबसे पते की बात शायद यही चेतावनी थी, जैसे पुराने एहदनामे के किसी नबी ने नबूवत की हो ... "क्रूरता तुम्हारी संस्कृति बन जाएगी"। बस एक बात का अफ़सोस आज तक बना रहा कि अपनी रिपोर्ट में मैंने न उस कविता का ज़िक्र किया और न बताया कि वह किस कवि की थी। सच कहूँ तो उस समय कवि का नाम रजिस्टर ही नहीं कर पाया था। लेकिन स्टोरी लिखते वक्त बस उसी की एक लाइन बार-बार याद आ रही थी। आज उस कोताही की भरपाई कर रहा हूँ। कविता थी "क्रूरता" और कवि थे कुमार अंबुज।

कविता के आज तक याद आते रहने का एक मुख्य कारण और भी था। सुनने वालों का रिएक्शन। जब कविता शुरू हुई और आधी पूरी हुई तो श्रोता बराबर सहमति की हुँकारी भरते रहे। मानो लेखक परिवर्तन लाने वाली किसी सृजनात्मक ताकत की उन्मुक्त अभिव्यक्ति की बात कर रहा हो। लेकिन जब कविता कुछ आगे बड़ी तो सुनने वाले कुछ असहज हुए, हुँकारें मानो पसीने की बूँदें बन पिघलने लगीं, सुनने वालों को  महसूस होने लगा कि जिस हिंसा को वह समर्थन कर रहे हैं वह अपनी पूरी विनाशकारी शक्ति के साथ वापिस उन्हीं को रौंदने आ रही है ... क्रूरता का यू-टर्न हो रहा है ...

कल अहमदाबाद की हुँकारियों पर लिखा था ... और आज यह खबर पढ़ी ...

खैर कविता देखी जाए।

क्रूरता/ कुमार अंबुज

तब आएगी क्रूरता
पहले हृदय में आएगी और चेहरे पर न दिखेगी
फिर घटित होगी धर्मग्रंथो की व्याख्या में
फिर इतिहास में और
भविष्यवाणियों में
फिर वह जनता का आदर्श हो जाएगी
....वह संस्कृति की तरह आएगी,
उसका कोई विरोधी नहीं होगा
कोशिश सिर्फ यह होगी
किस तरह वह अधिक सभ्य
और अधिक ऐतिहासिक हो
....यही ज्यादा संभव है कि वह आए
और लंबे समय तक हमें पता ही न चले उसका आना