उठो नवीन वर्ष में करो स्वदेश-बंदगी
रचो नवीन नीति-नींव पर नवीन ज़िंदगी
नई कली खिली नवीन वर्ष की खुली दिवा
नए प्रकर्ष-हर्ष में घुली-मिली खिला विभा
अनंत ज्योति-भूति के असंख्य द्वार खोल के--
बुला रहीं तुम्हें रहस्य-लोक की दशों दिशा
सुनो, पुकारता तुम्हें भविष्य ऊर्ध्व-बाहु हो--
उठो नवीन हर्ष लो नई क्षुधा नई तृषा
रचो नवीन पंथ लीक पीटते चलो नहीं
चलो, दलो त्रिशूल-शूल, लक्ष्य से टलो नहीं
नवीन सत्य के लिए नवीन खोज चाहिए
नई दिशा नवीन चाल रोज़-रोज़ चाहिए
नवीन सृष्टि के लिए नवीन बीज-वृष्टि दो
नई समष्टि के लिए बलिष्ट-पुष्ट व्यष्टि दो
रचो नवीन लोक जहाँ शाप हो न ताप हो
न रूढ़ियाँ, न बेड़ियाँ, न पुस्तकी प्रलाप हो
जहाँ कि व्यक्ति-व्यक्ति चंद्र-सूर्य-सा चमक उठे
जहाँ कि कंठ-कंठ मंद्र-तूर्य-सा ठनक उठे
न हो जहाँ अछूत-छूत भेदभाव गंदगी
रचो नवीन नीति-नींव पर नवीन ज़िंदगी
उठो नवीन वर्ष में स्वतंत्र राष्ट्र-भारती
नई हवा, नवीन रश्मियाँ तुम्हें पुकारतीं
स्वतंत्र जन्मभूमि को नवीन शब्द ज्ञान दो
अगीत गीत दो अरूप को स्वरूप-दान दो
नए विचार दो नए विचार को प्रचार दो
नवीन गान दो नवीन गान को सितार दो
नवीन भावना, नवीन कल्पना निबंध दो
नवीन काव्य के लिए नवीन छंद-बंध दो
करो समृद्ध भाव-भूमि वर्द्धमान हिंद की
उठो नवीन वर्ष में करो स्वदेश-बंदगी
कलक्टर सिंह 'केसरी'