सर्दियों के दिन थे। डॉ. सैम हिगिनबॉटम ने देखा कि संस्थान में पढ़ने वाले लड़कों में से कुछ ही के पास गर्म कपड़े थे। दस में से एक छात्र के पाँव में ही जूते होते थे। और ये छात्र सुबह-सुबह की सर्दी सहते हुए पत्थर के ठंडे फ़र्श पर अपनी क्लास लगाने के लिए बैठा करते थे। ठंड में सिकुड़ते हुए इन छात्रों के दाँतों के कटकटाने की आवाज़ शायद हिगिनबॉटम साहब ने भी सुनी होगी। उन्हें एहसास हुआ कि ऐसी हालत में लड़कों का पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर पाना मुश्किल होगा। डॉ. हिगिनबॉटम ने समाधान ढूँढने की कोशिश की। लड़कों को प्रोत्साहित किया कि क्लास में आने से पहले सब छात्र दौड़ कर खेल के मैदान का चक्कर लगाएँ। ज़ाहिर है इससे शरीर में खून का संचार बढ़ता था और शरीर में गर्मी आती थी। फिर सब छात्रों के साथ छोटी प्रार्थना सभा होती थी, जैसी आज भी हमारे विश्वविद्यलय में मॉर्निंग डिवोशन होती है। उसके बाद, छात्रों को गर्मागर्म और मीठा स्किम्ड मिल्क यानि कि मलाई-रहित दूध पिलाया जाता था, जो काफ़ी पौष्टिक भी होता था। और वाकई इसके बाद छात्रों का ध्यान पढ़ाई में लगता था।
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