मनुष्य के भय, चिंताएं, तनाव अभी समाप्त नहीं हुए। किसी को पुकारना की उसकी ज़रूरत अभी पुरानी नहीं पड़ी।
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है
दुख संकट की आंधी आई आंधी आई आंधी आई
सुबह अंधेरा रात सियाही रात सियाही रात सियाही
नही रोशनी किसी ओर भी नज़र नहीं कुछ आवे है
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है
तूफ़ानो को तुमने प्रभु जी शांत किया हां शांत किया
गहरे पानी की लहरों को डांट दिया फिर डांट दिया
तुम्हरी कोमल वाणी से मेरा डगमग मन बल पावे है
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है
दुख संकट की आंधी आई आंधी आई आंधी आई
सुबह अंधेरा रात सियाही रात सियाही रात सियाही
नही रोशनी किसी ओर भी नज़र नहीं कुछ आवे है
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है
तूफ़ानो को तुमने प्रभु जी शांत किया हां शांत किया
गहरे पानी की लहरों को डांट दिया फिर डांट दिया
तुम्हरी कोमल वाणी से मेरा डगमग मन बल पावे है
मन मेरा पतझड़ का पत्ता कांपे है प्रभु कांपे है