Tuesday, 31 January 2017

दो कविताएँ

एक 

क्योंकि तुम जाग रही हो दुनिया के दूसरे कोने में
यहाँ मेरी नींद की चादर छोटी
नींद का बिस्तर छोटा
नींद की तासीर जैसे आधी रह गई
बदन के कुछ ही हिस्सों तक पहुँचती है नींद
और मैं अधूरे सपने ही देखता हूँ

आधी थकान बची रहती है

आधी थकान क्या तुम्हें सताती है
क्या तुम्हें भी आती है नींद अधपकी

दुनिया के दूसरे कोने में

(अगस्त 2008)


दो

लंबा है सफ़र
अटलांटिक गहरी नींद में पार करना
अतातुर्क एयरपोर्ट पे झपकी लेना
और सोते हुए चुन लेना
तस्वीरों के सिलसिले
किस्सों के लिए माकूल लफ़्ज़
लेकिन
पहुँचो घर तो
हैंडबैग से निकाल
मलना मेरी आँखों पर
सबसे पहले
अपने बीस दिनों के ख़्वाब

(अगस्त 2008)

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